अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं।इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजन्ता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है।अजन्ता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।
नेशनल ज्यॉग्राफिक ‘’’ के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था कि प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजन्ता समेत, लगभग सभी बौद्ध मन्दिर, उस समय के बौद्ध मत के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों।
एक प्रथम कदम है और इसका अन्य गुफाओं के समयानुसार क्रम से कोई मतलब नहीं है। यह अश्वनाल आकार की ढाल पर पूर्वी ओर से प्रथम गुफा है। स्पिंक के अनुसार इस स्थल पर बनी अंतिम गुफाओं में से एक है और वाकाटक चरण के समाप्ति की ओर है। हालाँकि कोई शिलालेखित साक्ष्य उपस्थित नहीं हैं; फिर भी यह माना जाता है कि वाकाटक राजा हरिसेना इस उत्तम संरक्षित गुफा के संरक्षक रहे हों।
इसका प्रबल कारण यह है कि हरिसेना आरम्भ में अजंता के संरक्षण में सम्मिलित नहीं था, किन्तु लम्बे समय तक इनसे अलग नहीं रह सका, क्योंकि यह स्थल उसके शासन काल में गतिविधियों से भरा रहा और उसकी बौद्ध प्रजा को उस हिन्दू राजा का इस पवित्र कार्य को आश्रय देना प्रसन्न कर सकता था। यहाँ दर्शित कई विषय राजसिक हैं।
इस गुफा में अत्यंत विस्तृत नक्काशी कार्य किया गया है, जिसमें कई अति उभरे हुए शिल्प भी हैं। यहाँ बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कई घटनाएँ अंकित हैं, साथ ही अनेक अलंकरण नमूने भी हैं। इसका द्वि-स्तंभी द्वार-मण्डप, जो उन्नीसवीं शताब्दी तक दृश्य था (तब के चित्रानुसार), वह अब लुप्त हो चुका है। इस गुफा के आगे एक खुला स्थान था, जिसके दोनों ओर खम्भेदार गलियारे थे।
इसका स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा था। इसके द्वार मण्डप के दोनों ओर कोठियाँ हैं। इसके अन्त में खम्भेदार प्रकोष्ठों की अनुपस्थिति बताती है कि यह मण्डप अजंता के अन्तिम चरण के साथ नहीं बना था, जब कि खम्भेदार प्रकोष्ठ एक नियमित अंग बन चुके थे। पोर्च का अधिकांश क्षेत्र कभी मुराल से भरा रहा होगा, जिसके कई अवशेष अभी भी शेष हैं। यहाँ तीन द्वार पथ हैं, एक केन्द्रीय व दो किनारे के। इन द्वारपथों के बीच दो वर्गाकार खिड़कियाँ तराशी हुई है, जिनसे अंतस उज्ज्वलित होता था।
महाकक्ष (हॉल) की प्रत्येक दीवार लगभग 40 फीट लम्बी और 20 फीट ऊँची है। बारह स्तम्भ अन्दर एक वर्गाकार कॉलोनेड बनाते हैं जो छत को सहारा देते हैं, साथ ही दीवारों के साथ-साथ एक गलियारा-सा बनाते हैं। पीछे की दीवार पर एक गर्भगृहनुमा छवि तराशी गयी है, जिसमें बुद्ध अपनी धर्म-चक्र-प्रवर्तन मुद्रा में बैठे दर्शित हैं। पीछे, बायीं एवं दायीं दीवार में चार-चार कमरे बने हैं। यह दीवारें चित्रकारी से भरी हैं, जो कि संरक्षण की उत्तम अवस्था में हैं। दर्शित दृश्य अधिकतर उपदेशों, धार्मिक एवम् अलंकरण के हैं। इनके विषय जातक कथाओं, गौतम बुद्ध के जीवन, आदि से सम्बन्धित हैं।
प्रथम शताब्दी में हुए बौद्ध विचारों में अन्तर से, बुद्ध को देवता का दर्जा दिया जाने लगा और उनकी पूजा होने लगी। परिणामतः बुद्ध को पूजा-अर्चना का केन्द्र बनाया गया; जिससे महायन की उत्पत्ति हुई।पूर्व में, शिक्षाविदों ने गुफाओं को तीन समूहों में बाँटा था, किन्तु साक्ष्यों को देखते हुए और शोधों के चलते उसे नकार दिया गया। उस सिद्धान्त के अनुसार 200 ई॰ पूर्व से 200 ई॰ तक एक समूह, द्वितीय समूह छठी शताब्दी का और तृतीय समूह सातवीं शताब्दी का माना जाता था।
आंग्ल-भारतीयों द्वारा विहारों हेतु प्रयुक्त अभिव्यंजन गुफा-मंदिर अनुपयुक्त माना गया। अजंता एक प्रकार का महाविद्यालय मठ था। ह्वेन त्सांग बताता है कि दिन्नाग, एक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक, तत्वज्ञ, जो कि तर्कशास्त्र पर कई ग्रन्थों के लेखक थे, यहाँ रहते थे। यह अभी अन्य साक्ष्यों से प्रमाणित होना शेष है। अपने चरम पर विहार सैंकड़ों को समायोजित करने की सामर्थ्य रखते थे। यहाँ शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे। यह अति दुःखद है कि कोई भी वाकाटक चरण की गुफा पूर्ण नहीं है। यह इस कारण हुआ कि शासक वाकाटक वंश एकाएक शक्तिविहीन हो गया, जिससे उसकी प्रजा भी संकट में आ गयी। इसी कारण सभी गतिविधियाँ बाधित होकर एकाएक रूक गयीं। यह समय अजंता का अंतिम काल रहा।
लेखक :- पुष्कर मिश्रा 📝🖋️
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