Tuesday, May 4, 2021

Maa sharda devi temple,maihar satna Madhya Pradesh


मैहर मध्य प्रदेश मैं प्रस्तावित जिला है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है। यह सतना जिला मै है|इन्हीं के नाम से एक विद्यालय खुला है जिसका नाम माँ शारदा धनराजी देवी इंटर कॉलेज है जो कि उत्तर प्रदेश के भदोही के दवनपुर में स्थित है । 

मैहर में शारदा माँ का प्रसिद्ध मन्दिर है जो नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर 'नरसिंह पीठ' के नाम से भी विख्यात है। 
शारदा मन्दिर से आल्हा-उदल जलाशय

यहाँ प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री मैहर आते हैं। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है।

देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल देश के लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है माता का यह मंदिर धार्मिक तथा ऐतिहासिक है।

वर्तमान में यहां पर आर्थिक दृष्टि से सीमेंट की तीन फैक्ट्रियां कार्यरत हैं। के जे एस के पास इच्छापूर्ति मंदिर पर्यटकों का दर्शनीय स्थल है ।

त्रिकूट पर्वत से मां शारदा मंदिर का दृश्य
 मैहर में त्रिकुट पर्वत की ऊंची पहाड़ियों के ऊपर शारदा देवी का मंदिर है।जो शहर के मध्य से लगभग 5 किमी ऊपर है।

वहाँ एक शारदा देवी की पत्थर की मूर्ति के पैर शारदा देवी मंदिर के पास में स्थित प्राचीन शिलालेख है। वहाँ शारदा देवी के साथ भगवान नरसिंह की एक मूर्ति है। इन मूर्तियों नुपूला देवा द्वारा शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष पर 14 मंगलवार, विक्रम संवत् 559 अर्थात 502 ई. स्थापित किया गया। 

चार पंक्तियों में इस पत्थर शिलालेख शारदा देवी देवनागरी लिपि में "3.5 से" 15 आकार की है। मंदिर में एक और पत्थर शिलालेख एक शैव संत Shamba जो बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी ज्ञान था द्वारा 34 "31" आकार का खुदा होता है। इस शिलालेख नागदेव के एक दृश्य भालू और पता चलता है कि यह दामोदर , सरस्वती के बेटे के बारे में थी, कलियुग का व्यास माना जाता है। और यह है कि पूजा के दौरान उस समय बकरी बलिदान की व्यवस्था चली।

स्थानीय परंपरा का पता चलता है कि योद्धाओं आल्हा और उदल, जो पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध किया था इस जगह के साथ जुड़े रहे हैं। दोनों भाई शारदा देवी के बहुत मजबूत अनुयायी थे। 
इस तालाब से 2 किलोमीटर की दूरी पर आल्हा औरउदल जहां वे कुश्ती का अभ्यास किया था के अखाड़े स्थित है। 
ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हा व ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है।

लेखक :- पुष्कर मिश्रा 📝🖋️

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